हनुमान जी का एक नाम बजरंग बली भी है। बजरंग बाण का शाब्दिक अर्थ है हनुमान जी रूपी तीर या हनुमान जी की तीर। दोनों ही अर्थों में वह अपने भक्तों की रक्षा के लिये एक अमोघ अस्त्र है। बजरंग बाण का पाठ हनुमान जी की पूजा के समय या हनुमान जी से संबंधित किसी भी विशेष अवसर पर किया जा सकता है।
॥ दोहा ॥
निश्चय प्रेम प्रतीति ते, बिनय करै सनमान ।
तेहि के कारज सकल सुभ, सिद्ध करैं हनुमान ॥
॥ चौपाई ॥
जय हनुमंत संत-हितकारी । सुनि लीजै प्रभु बिनय हमारी ॥
जन के काज बिलंब न कीजै । आतुर दौरि महासुख दीजै ॥
जैसे कूदि सिंधु के पारा । सुरसा बदन पैठि बिस्तारा ॥
आगे जाय लंकिनी रोका । मारेहु लात गई सुरलोका ॥
जाय बिभीषन को सुख दीन्हा । सीता निरखि परम-पद लीन्हा ॥
बाग उजारि सिंधु महँ बोरा । अति आतुर जमकातर तोरा ॥
अछय कुमार मारि संहारा । लूम लपेटि लंक को जारा ॥
लाह समान लंक जरि गई । जय जय धुनि सुरपुर नभ भई ॥
अब बिलम्ब केहि कारन स्वामी । कृपा करहु उर अंतरजामी ॥
जय जय लखन प्रान के दाता । आतुर ह्वै दुख करहु निपाता ॥
जय हनुमान जयति बल-सागर । सुर-समूह-समरथ भट-नागर ॥
ॐ हनु हनु हनु हनुमंत हठीलै । बैरिहि मारु बज्र की कीलै ॥
ॐ हीं हीं हीं हनुमंत कपीसा । ॐ हुं हुं हुं हनु अरि उर-सीसा ॥
जय अंजनिकुमार बलवंता । संकरसुवन बीर हनुमंता ॥
बदन कराल काल-कुल-घालक । राम-सहाय सदा प्रतिपालक ॥
भूत, प्रेत, पिसाच, निसाचर । अगनि बेताल काल मारी मर ॥
इन्हें मारु, तोहि सपथ राम की । राखु नाथ मरजाद नाम की ॥
सत्य होहु हरि सपथ पाइ कै । रामदूत धरु मारु धाइ कै ॥
जय जय जय हनुमंत अगाधा । दुख पावत जन केहि अपराधा ॥
पूजा जप तप नेम अचारा । नहि जानत कछु दास तुम्हारा ॥
बन उपबन मग गिरि गृह माहीं । तुम्हरे बल हौं डरपत नाहीं ॥
जनकसुता-हरि-दास कहावौ । ता की सपथ, बिलंब न लावौ ॥
जय-जय-जय-धुनि होत अकासा । सुमिरत होय दुसह दुख नासा ॥
चरन पकरि, कर जोरि मनावौं । यहि औसर अब केहि गोहरावौं ॥
उठ, उठ, चलु, तोहि राम-दोहाई । पायँ परौं, कर जोरि मनाई ॥
ॐ चम चम चम चम चपल चलंता । ॐ हनु हनु हनु हनु हनु-हनुमंता ॥
ॐ हं हं हाँक देत कपि चंचल । ॐ सं सं सहमि पराने खल-दल ॥
अपने जन को तुरत उबारौ । सुमिरत होय अनंद हमारौ ॥
यह बजरंग बाण जेहि मारै । ताहि कहौ फिरि कवन उबारै ॥
पाठ करै बजरंग बाण की । हनुमत रच्छा करैं प्रान की ॥
यह बजरंग बाण जो जापैं । तासों भूत-प्रेत सब काँपैं ॥
धूप देय जो जपै हमेसा । ता के तन नहिं रहै कलेसा ॥
॥ दोहा ॥
उर प्रतीति दृढ़, सरन ह्वै, पाठ करै धरि ध्यान ।
बाधा सब हर, करै सब काम सफल हनुमान ॥
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