कार्तिक कृष्ण अमावस्या को दीपावली के दिन भगवती श्रीमहालक्ष्मी एवं भगवान गणेश की नूतन प्रतिमाओं का प्रतिष्ठापूर्वक विशेष पूजन किया जाता है। आइये जानते हैं दीपावली पूजन की प्रामाणिक विधि जिससे आप घर या व्यापारिक प्रतिष्ठानों में सुन्दर तरीके से लक्ष्मी-गणेश की पूजा कर सकते हैं।
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दीपावली पूजन विधि
पूजन के लिये किसी चौकी अथवा कपड़े के पवित्र आसन पर गणेशजी के दाहिने भाग में माता महालक्ष्मी को स्थापित करना चाहिये।
पूजन के दिन घर को स्वच्छ कर पूजा स्थान को भी पवित्र कर लेना चाहिये एवं स्वयं भी पवित्र होकर श्रद्धा-भक्तिपूर्वक सायंकाल इनका पूजन करना चाहिये।
मूर्तिमयी श्रीमहालक्ष्मीजी के पास ही किसी पवित्र पात्र में केसरयुक्त चन्दन से अष्टदल कमल बनाकर उस पर द्रव्य लक्ष्मी ( रुपयों ) को भी स्थापित करके एक साथ ही दोनों की पूजा करनी चाहिये।
सर्वप्रथम पूर्वाभिमुख अथवा उत्तराभिमुख हो आचमन, पवित्री धारण, मार्जन प्राणायाम कर अपने ऊपर तथा पूजा सामग्री पर निम्न मन्त्र पढ़कर जल छिड़के।
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा ।
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः ॥
संकल्प
इसके बाद जल, अक्षत आदि लेकर पूजन का संकल्प करे।
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः अद्य मासोत्तमे मासे कार्तिकमासे कृष्णपक्षे पुण्यायाममावास्यायां तिथौ ( आज का दिन रवि, सोम आदि ) वासरे ( आपका गोत्र ) गोत्रोत्पन्नः ( आपका नाम ) गुप्तोऽहं श्रुतिस्मृतिपुराणोक्तफलावाप्तिकामनया ज्ञाताज्ञातकायिकवाचिकमानसिकसकलपापनिवृत्तिपूर्वकं स्थिरलक्ष्मीप्राप्तये श्रीमहालक्ष्मीप्रीत्यर्थं महालक्ष्मीपूजनं कुबेरादीनां च पूजनं करिष्ये। तदङ्गत्वेन गौरीगणपत्यादिपूजनं च करिष्ये।
ऐसा कहकर संकल्प का जल आदि छोड़ दे।
प्रतिष्ठा
पूजन से पूर्व नूतन प्रतिमा की निम्न रीति से प्राण प्रतिष्ठा कर ले। बायें हाथ में अक्षत लेकर निम्नलिखित मन्त्रों को पढ़ते हुए दाहिने हाथ से उन अक्षतों को प्रतिमा पर छोड़ता जाये।
ॐ मनो जूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं यज्ञ समिमं दधातु ।
विश्वे देवास इह मादयन्तामोऽम्प्रतिष्ठ ॥
ॐ अस्यै प्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणाः क्षरन्तु च ।
अस्यै देवत्वमर्चायै मामहेति च कश्चन ॥
इस प्रकार प्रतिष्ठा कर सर्वप्रथम भगवान गणेश का पूजन करे। इसके बाद कलश पूजन तथा षोडशमातृका पूजन करे। तत्पश्चात प्रधान पूजा में मन्त्रों द्वारा भगवती महालक्ष्मी का षोडशोपचार पूजन करे।
‘ ॐ महालक्ष्म्यै नमः ‘ – इस नाम मन्त्र से भी उपचारों द्वारा पूजा की जा सकती है।
प्रार्थना
विधिपूर्वक श्रीमहालक्ष्मी का पूजन करने के बाद हाथ जोड़कर प्रार्थना करे।
सुरासुरेन्द्रादिकिरीटमौक्तिकैर्युक्तं सदा यत्तव पादपङ्कजम् ।
परावरं पातु वरं सुमङ्गलं नमामि भक्त्याखिलकामसिद्धये ॥
भवानि त्वं महालक्ष्मीः सर्वकामप्रदायिनी ।
सुपूजिता प्रसन्ना स्यान्महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥
नमस्ते सर्वदेवानां वरदासि हरिप्रिये ।
या गतिस्त्वत्प्रपन्नानां सा मे भूयात् त्वदर्चनात् ॥
‘ ॐ महालक्ष्म्यै नमः, प्रार्थनापूर्वकं नमस्कारान् समर्पयामि। ‘ – प्रार्थना करते हुए नमस्कार करे।
समर्पण
पूजन के अंत में ‘ कृतेनानेन पूजनेन भगवती महालक्ष्मीदेवी प्रीयताम् , न मम। ‘ – यह वाक्य उच्चारण कर समस्त पूजन कर्म भगवती महालक्ष्मी को समर्पित करे तथा जल गिराये।
भगवती महालक्ष्मी के यथालब्धोपचार पूजन के बाद महालक्ष्मी पूजन के अङ्गरूप, देहलीविनायक, दावात, लेखनी, सरस्वती, कुबेर, तुला-मान तथा दीपकों की पूजा की जाती है। संक्षेप में उन्हें भी यहाँ दिया जा रहा है। सर्वप्रथम देहलीविनायक की पूजा की जाती है।
देहलीविनायक पूजन
व्यापारिक प्रतिष्ठानों में दीवारों पर ‘ ॐ श्रीगणेशाय नमः ‘ , ‘ स्वस्तिक चिन्ह ‘, ‘ शुभ-लाभ ‘ आदि मांगलिक एवं कल्याणकर शब्द सिन्दूर आदि से लिखे जाते हैं। इन्हीं शब्दों पर ‘ ॐ देहलीविनायकाय नमः ‘ – इस नाम मन्त्र द्वारा गन्ध, पुष्प आदि से पूजन करे।
श्रीमहाकाली ( दावात ) पूजन
स्याहीयुक्त दावात को भगवती महालक्ष्मी के सामने पुष्प तथा अक्षत में रखकर उसमें सिन्दूर से स्वस्तिक बना दे तथा मौली लपेट दे।
‘ ॐ श्रीमहाकाल्यै नमः ‘ – इस नाम मन्त्र से गन्ध, पुष्प आदि पञ्चोपचारों से या षोडशोपचारों से दावात में भगवती महाकाली का पूजन करे और अंत में इस प्रकार प्रार्थनापूर्वक उन्हें प्रणाम करे।
कालिके त्वं जगन्मातर्मसिरूपेण वर्तसे ।
उत्पन्ना त्वं च लोकानां व्यवहारप्रसिद्धये ॥
या कालिका रोगहरा सुवन्द्या
भक्तैः समस्तैर्व्यवहारदक्षैः ।
जनैर्जनानां भयहारिणी च
सा लोकमाता मम सौख्यदास्तु ॥
लेखनी पूजन
लेखनी ( कलम ) पर मौली बाँधकर सामने रख ले और –
लेखनी निर्मिता पूर्वं ब्रह्मणा परमेष्ठिना ।
लोकानां च हितार्थाय तस्मात्तां पूजयाम्यहम् ॥
‘ ॐ लेखनीस्थायै देव्यै नमः ‘ – इस नाम मन्त्र द्वारा गन्ध, पुष्प, अक्षत आदि से पूजन कर इस प्रकार प्रार्थना करे –
शास्त्राणां व्यवहाराणां विद्यानामाप्नुयाद्यतः ।
अतस्त्वां पूजयिष्यामि मम हस्ते स्थिरा भव ॥
सरस्वती ( पञ्जिका – बहीखाता ) पूजन
बही, बसना तथा थैली में रोली या केसरयुक्त चन्दन से स्वस्तिक चिन्ह बनाये एवं थैली में पाँच हल्दी की गाँठें, धनिया, कमलगट्टा, अक्षत, दूर्वा और द्रव्य रखकर उसमें सरस्वती का पूजन करे। सर्वप्रथम सरस्वतीजी का ध्यान इस प्रकार करे –
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना ।
या ब्रह्माच्युतशङ्करप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥
‘ ॐ वीणापुस्तकधारिण्यै श्रीसरस्वत्यै नमः ‘ – इस नाम मन्त्र से गन्धादि उपचारों द्वारा पूजन करे।
कुबेर पूजन
तिजोरी अथवा रुपये रखे जानेवाले संदूक आदि को स्वस्तिक आदि से अलंकृत कर उसमें निधिपति कुबेर का आवाहन करे –
आवाहयामि देव त्वामिहायाहि कृपां कुरु ।
कोशं वर्द्धय नित्यं त्वं परिरक्ष सुरेश्वर ॥
आवाहन के पश्चात ‘ ॐ कुबेराय नमः ‘ – इस नाम मन्त्र से यथालब्धोपचार पूजन कर अंत में इस प्रकार प्रार्थना करे –
धनदाय नमस्तुभ्यं निधिपद्माधिपाय च ।
भगवन् त्वत्प्रसादेन धनधान्यादिसम्पदः ॥
इस प्रकार प्रार्थना कर पूर्वपूजित हल्दी, धनिया, कमलगट्टा, द्रव्य, दूर्वा आदि से युक्त थैली तिजोरी में रखे।
तुला तथा मान पूजन
सिन्दूर से तराजू आदि पर स्वस्तिक बना ले। मौली लपेटकर तुलाधिष्ठातृ देवता का इस प्रकार ध्यान करना चाहिये –
नमस्ते सर्वदेवानां शक्तित्वे सत्यमाश्रिता ।
साक्षीभूता जगद्धात्री निर्मिता विश्वयोनिना ॥
ध्यान के बाद ‘ ॐ तुलाधिष्ठातृदेवतायै नमः ‘ – इस नाम मन्त्र से गन्ध, अक्षत आदि उपचारों द्वारा पूजन कर नमस्कार करे।
दीपमालिका ( दीपक ) पूजन
किसी पात्र में ग्यारह, इक्कीस या उससे अधिक दीपकों को प्रज्वलित कर महालक्ष्मी के समीप रखकर उस दीपज्योति का ‘ ॐ दीपावल्यै नमः ‘ – इस नाम मन्त्र से गन्धादि उपचारों द्वारा पूजन कर इस प्रकार प्रार्थना करे –
त्वं ज्योतिस्त्वं रविश्चन्द्रो विद्युदग्निश्च तारकाः ।
सर्वेषां ज्योतिषां ज्योतिर्दीपावल्यै नमो नमः ॥
दीपमालिकाओं का पूजन कर अपने आचार के अनुसार संतरा, ईख, पानीफल, धान का लावा इत्यादि पदार्थ चढ़ाये। धान का लावा ( खील ) गणेश, महालक्ष्मी तथा अन्य सभी देवी-देवताओं को भी अर्पित करे।
अंत में अन्य सभी दीपकों को प्रज्वलित कर उनसे सारे घर को सजायें।
प्रधान आरती
इस प्रकार भगवती महालक्ष्मी तथा उनके सभी अंग – प्रत्यंगों एवं उपांगों का पूजन कर लेने के बाद प्रधान आरती करनी चाहिये।
इसके लिये एक थाली में स्वस्तिक आदि मांगलिक चिन्ह बनाकर अक्षत तथा पुष्पों के आसन पर किसी दीपक में घृतयुक्त बत्ती प्रज्वलित करे।
एक पृथक पात्र में कर्पूर भी प्रज्वलित कर वह पात्र भी थाली में यथास्थान रख ले, आरती थाल का जल से प्रोक्षण कर ले। पुनः आसन पर खड़े होकर सपरिवार घण्टानादपूर्वक निम्न आरती गाते हुए महालक्ष्मीजी की मंगल आरती करे –
ॐ जय लक्ष्मी माता, ( मैया ) जय लक्ष्मी माता।
तुमको निसिदिन सेवत हर-विष्णू-धाता ॥ ॐ जय० ॥
उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता।
सूर्य-चन्द्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता ॥ ॐ जय० ॥
मन्त्र पुष्पाञ्जलि
दोनों हाथों में कमल आदि के पुष्प लेकर हाथ जोड़े और निम्न मन्त्र का पाठ करे –
ॐ या श्रीः स्वयं सुकृतिनां भवनेष्वलक्ष्मीः
पापात्मनां कृतधियां हृदयेषु बुद्धिः ।
श्रद्धा सतां कुलजनप्रभवस्य लज्जा
तां त्वां नताः स्म परिपालय देवि विश्वम् ॥
‘ ॐ श्रीमहालक्ष्म्यै नमः , मन्त्रपुष्पाञ्जलिं समर्पयामि। ‘ – ऐसा कहकर हाथ में लिये फूल महालक्ष्मी पर चढ़ा दे। प्रदक्षिणा कर साष्टाङ्ग प्रणाम करे, पुनः हाथ जोड़कर क्षमा प्रार्थना करे –
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम् ।
पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वरि ॥
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि ।
यत्पूजितं मया देवि परिपूर्णं तदस्तु मे ॥
सरसिजनिलये सरोजहस्ते धवलतमांशुकगन्धमाल्यशोभे ।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम् ॥
पुनः प्रणाम करके ‘ ॐ अनेन यथाशक्त्यर्चनेन श्रीमहालक्ष्मीः प्रसीदतु ‘ यह कहकर जल छोड़ दे। ब्राह्मण एवं गुरुजनों को प्रणाम कर चरणामृत तथा प्रसाद वितरण करे।
विसर्जन
पूजन के अंत में अक्षत लेकर गणेश एवं महालक्ष्मी की नूतन प्रतिमा को छोड़कर अन्य सभी आवाहित, प्रतिष्ठित एवं पूजित देवताओं को अक्षत छोड़ते हुए निम्न मन्त्र से विसर्जित करे।
यान्तु देवगणाः सर्वे पूजामादाय मामकीम् ।
इष्टकामसमृद्ध्यर्थं पुनरागमनाय च ॥
उपसंहार
भगवती महालक्ष्मी चल-अचल, दृश्य-अदृश्य सभी सम्पत्तियों, सिद्धियों एवं निधियों की अधिष्ठात्री देवी हैं। भगवान श्रीगणेश सिद्धि, बुद्धि एवं शुभ-लाभ के स्वामी तथा सभी विघ्नों के नाशक हैं।
अतः लक्ष्मी-गणेश के विधिपूर्वक पूजन से सभी प्रकार के मंगल एवं आनंद प्राप्त होते हैं। उपरोक्त विधि से दीपावली के साथ-साथ अन्य अवसरों पर होनेवाले लक्ष्मी-गणेश की पूजा भी की जा सकती है।
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