गुरु गोविन्द दोऊ खड़े काके लागू पाय | Kabir Ke Dohe

Guru Govind Dou Khade, Kabir Ke Dohe, गुरु गोविन्द दोऊ खड़े
Guru Govind Dou Khade

गुरु गोविन्द दोऊ खड़े , काके लागू पाय |
बलिहारी गुरु आपने , गोविन्द दियो बताय ||

अर्थकबीर दास जी ने इस दोहे में गुरु की महिमा का वर्णन किया है। वे कहते हैं कि जीवन में कभी ऐसी परिस्थिति आ जाये की जब गुरु और गोविन्द (ईश्वर) एक साथ खड़े मिलें तब पहले किन्हें प्रणाम करना चाहिए। गुरु ने ही गोविन्द से हमारा परिचय कराया है इसलिए गुरु का स्थान गोविन्द से भी ऊँचा है।

कबीरा ते नर अँध है, गुरु को कहते और |
हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर ||

अर्थ – कबीर कहते हैं कि वे लोग अंधे हैं जो गुरु को ईश्वर से अलग समझते हैं। अगर भगवान रूठ जाएँ तो गुरु का आश्रय है पर अगर गुरु रूठ गए तो कहीं शरण नहीं मिलेगा।

सब धरती कागज करूँ, लेखनी सब बनराय |
सात समुंदर की मसि करूँ, गुरु गुण लिखा न जाय ||

अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि अगर सारी धरती को कागज बना लिया जाये, समस्त जंगल की लकड़ियों को कलम और सातों समुद्र के जल को स्याही बना लिया जाये तो भी गुरु की महिमा का वर्णन करना संभव नहीं है।

यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान |
शीश दियो जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान ||

अर्थ – इस दोहे में कबीर दास जी ने शरीर की तुलना विष के बेल से की है वहीं गुरु की अमृत की खान से। वे कहते हैं कि अपना शीश देकर भी अगर गुरु की कृपा मिले तो यह सौदा बहुत ही सस्ता है।

तीरथ गए ते एक फल, संत मिले फल चार |
सद्गुरु मिले अनेक फल, कहे कबीर विचार ||

अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि तीर्थ में जाने से एक फल मिलता है वहीँ किसी संत से मिलने पर चार प्रकार के फल मिलते हैं पर जीवन में अगर सच्चा गुरु मिल जाये तो समस्त प्रकार के फल मिल जाते हैं।

गुरु पारस को अन्तरो, जानत हैं सब संत |
वह लोहा कंचन करे, ये करि लेय महंत ||

अर्थ – गुरु और पारस के अंतर को ज्ञानी पुरुष बहुत अच्छे से जानते हैं। जिस प्रकार पारस का स्पर्श लोहे को सोना बना देता है उसी प्रकार गुरु का नित्य सान्निध्य शिष्य को भी अपने गुरु के समान ही महान बना देता है।

बनिजारे के बैल ज्यों, भरमि फिर्यो चहुँदेश |
खाँड़ लादी भुस खात है, बिन सतगुरु उपदेश ||

अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि जिस प्रकार बंजारों के बैल अपनी पीठ पर शक्कर लाद कर चारों ओर घूमते हैं पर उनको खाने के लिए भूसा ही मिलता है। उसी प्रकार मनुष्य का जीवन भी सद्गुरु के सुन्दर उपदेशों के बिना आत्मकल्याण के मार्ग से वंचित रहता है।

गुरु किया है देह का, सतगुरु चीन्हा नाहिं |
भवसागर के जाल में, फिर फिर गोता खाहि ||

अर्थ – इस दोहे में कबीर दास जी कहते हैं कि हमें कभी भी बाहरी आडम्बर देखकर गुरु नहीं बनाना चाहिए बल्कि ज्ञान और गुण को देखकर ही गुरु का चुनाव करना चाहिए नहीं तो इस संसार रुपी सागर में गोता लगाना पड़ेगा।

या दुनिया दो रोज की, मत कर यासो हेत |
गुरु चरनन चित लाइये, जो पुराण सुख हेत ||

अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि यह दुनिया कुछ ही दिनों की है इसलिए इससे मोह का सम्बन्ध नहीं जोड़ना चाहिए। अपने मन को गुरु के चरणों में लगाएं जो सब प्रकार का सुख देने वाला है।

कुमति कीच चेला भरा, गुरु ज्ञान जल होय |
जनम – जनम का मोरचा, पल में डारे धोय ||

अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि शिष्य की कुमति रुपी कीचड़ को धोने के लिए गुरु ज्ञान रुपी जल के समान हैं। वे शिष्य के जन्मों जन्मों की बुराइयों को पल में दूर कर देते हैं।

कहते को कही जान दे, गुरु की सीख तू लेय |
साकट जन औश्वान को, फेरि जवाब न देय ||

अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि कहने वाले कहते रहें पर तू हमेशा एकमात्र गुरु की सिख को ही अपने ह्रदय में धारण कर। कभी भी दुष्ट मनुष्यों और कुत्तों को पलट कर जबाब नहीं दिया जाता।

गुरु को सिर राखिये, चलिये आज्ञा माहिं |
कहैं कबीर ता दास को, तीन लोकों भय नाहिं ||

अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि गुरु की आज्ञा को सर आँखों पर रख कर पालन करना चाहिए। ऐसे भक्त को तीनों लोक में कहीं कोई भय नहीं है।

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गुरु गोविन्द दोऊ खड़े काके लागू पाय
( Guru Govind Dou Khade Kake Lagu Paye )

11 thoughts on “गुरु गोविन्द दोऊ खड़े काके लागू पाय | Kabir Ke Dohe”

  1. A nice collection of “DOHAS” which gives us lot of moral values, healthy culture and guidance to live a better life style.

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  2. हरि हरि हरि बोल ! बहुत सुंदर और अर्थपूर्ण दोहे ! बहुत आभार, भक्तमाल! May Guru + God Bless you! ✨🍎🙏🏻

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