आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा के दिन पुराणों के रचयिता भगवान वेदव्यास का जन्म हुआ था। व्यास जी के सम्मान में ही इस दिन गुरु पूर्णिमा या व्यास पूर्णिमा मनाई जाती है।
गुरु पूर्णिमा अर्थात सद्गुरु के पूजन का पर्व। गुरु की पूजा किसी व्यक्ति की पूजा नहीं है, बल्कि गुरु के देह के अंदर जो परब्रह्म परमात्मा है उसका पूजन है, ज्ञान का पूजन है, ब्रह्मज्ञान का पूजन है।
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गुरु पूर्णिमा कब है ?
गुरु पूर्णिमा 2022 / Guru Purnima 2022 Date – 13 July 2022
तिथि – आषाढ़ पूर्णिमा
महर्षि वेदव्यास कौन थे ?
महर्षि वेदव्यास को भगवान विष्णु का अंशावतार माना जाता है।
वशिष्ठ के पौत्र पराशर ऋषि के पुत्र वेदव्यास जी जन्म के कुछ समय बाद ही अपनी माँ से कहने लगे – ” अब हम जाते हैं तपस्या के लिये। “
माँ बोली – ” बेटा ! पुत्र तो माता-पिता की सेवा के लिये होता है। माता-पिता के अधूरे कार्य को पूर्ण करने के लिये होता है और तुम अभी से जा रहे हो ? “
व्यास जी ने कहा – ” माँ ! तुम जरुरी काम से जब भी याद करोगी तब मैं तुम्हारे आगे प्रकट हो जाऊँगा। “
माँ से आज्ञा लेकर व्यास जी तप के लिये चल दिये। वे बदरिकाश्रम गये। वहाँ एकांत में समाधि लगाकर रहने लगे।
बदरिकाश्रम में बेर पर जीवन-यापन करने के कारण उनका एक नाम ‘बादरायण’ भी पड़ा। व्यास जी द्वीप में प्रकट हुए इसलिये उनका नाम ‘द्वैपायन’ पड़ा।
वे कृष्ण (काले) रंग के थे इसलिये उन्हें ‘कृष्णद्वैपायन’ भी कहते हैं। उन्होंने वेदों का विस्तार किया, इसलिये उनका नाम ‘वेदव्यास’ भी पड़ा।
ज्ञान के असीम सागर, भक्ति के आचार्य, विद्वता की पराकाष्ठा और अथाह कवित्व शक्ति – इनसे बड़ा कोई कवि मिलना मुश्किल है।
व्यास जी ने वेदों के विभाग किये। ‘ब्रह्मसूत्र’ व्यास जी ने ही बनाया। महाभारत की रचना एवं 18 पुराणों का प्रतिपादन भी भगवान वेदव्यास जी ने ही किया है।
व्यास जी ने पूरी मानव जाति को सच्चे कल्याण का खुला रास्ता बता दिया है।
जिन-जिनके अंतःकरण में ऐसे व्यास जी का ज्ञान, उनकी अनुभूति और निष्ठा उभरी, ऐसे पुरुष अभी भी ऊँचे आसन पर बैठते हैं तो कहा जाता है कि भागवत कथा में अमुक महाराज व्यासपीठ पर विराजेंगे।
गुरु पूर्णिमा का महत्व
गुरु पूर्णिमा सबसे बड़ी पूर्णिमा मानी जाती है क्योंकि परमात्मा के ज्ञान, ध्यान और प्रीति की तरफ ले जानेवाली है यह पूर्णिमा।
जब तक मनुष्य को सत्य की, ज्ञान की प्यास रहेगी तब तक व्यास पुरुषों का, ब्रह्मज्ञानियों का आदर-पूजन होता रहेगा।
गुरु पूर्णिमा का पर्व वर्षभर की पूर्णिमा मनाने के पुण्य का फल तो देता ही है, साथ ही नयी दिशा, नया संकेत भी देता है और कृतज्ञता का सद्गुण भी भरता है।
जिन महापुरुषों ने कठोर परिश्रम करके हमारे लिये सब कुछ किया, उन महापुरुषों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन का अवसर, ऋषिऋण चुकाने का अवसर, ऋषियों की प्रेरणा और आशीर्वाद पाने का अवसर है, गुरु पूर्णिमा।
गुरुजनों, श्रेष्ठजनों एवं अपने से बड़ों के प्रति अगाध श्रद्धा का यह पर्व भारतीय सनातन संस्कृति का विशिष्ट पर्व है।
इस प्रकार कृतज्ञता व्यक्त करने का और तप , व्रत, साधना में आगे बढ़ने का भी यह त्योहार है।
संयम, सहजता, शान्ति और माधुर्य तथा जीते-जी मधुर जीवन की दिशा बनानेवाली पूर्णिमा है, गुरु पूर्णिमा।
ईश्वर प्राप्ति की सहज, साध्य और साफ-सुथरी दिशा बतानेवाला त्योहार है, गुरु पूर्णिमा। यह आस्था का पर्व है, श्रद्धा का पर्व है, समर्पण का पर्व है।
उपसंहार
मानव जीवन में गुरु का बहुत महत्व है। स्वयं भगवान ने भी जब-जब मनुष्य अवतार ग्रहण किया तब उन्होंने भी गुरु की आज्ञा को सदैव सर्वोपरि रखा और अपने गुरुओं के प्रति एकनिष्ठ सम्मान का भाव रखा।
इसीलिये गुरु को ईश्वर से भी बड़ा माना गया है।
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुर्गुरुर्देवो महेश्वरः ।
गुरुः साक्षात्परं ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥
संबंधित प्रश्न
गुरु पूर्णिमा क्यों मनाई जाती है ?
आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा के दिन पुराणों के रचयिता भगवान वेदव्यास का जन्म हुआ था। व्यास जी के सम्मान में ही इस दिन गुरु पूर्णिमा या व्यास पूर्णिमा मनाई जाती है।
गुरु पूर्णिमा कब मनाई जाती है ?
गुरु पूर्णिमा प्रत्येक वर्ष आषाढ़ मास के पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है।
गुरु पूर्णिमा का उद्देश्य क्या है ?
जिन महापुरुषों ने कठोर परिश्रम करके हमारे लिये सब कुछ किया, उन महापुरुषों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन का अवसर, ऋषिऋण चुकाने का अवसर, ऋषियों की प्रेरणा और आशीर्वाद पाने का अवसर है, गुरु पूर्णिमा।
इस प्रकार गुरुजनों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करना और तप, व्रत, साधना में आगे बढ़ना ही गुरु पूर्णिमा का उद्देश्य है।
गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा क्यों कहा जाता है ?
आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा के दिन पुराणों के रचयिता भगवान वेदव्यास का जन्म हुआ था। महर्षि वेदव्यास के नाम से ही आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा (गुरु पूर्णिमा) को व्यास पूर्णिमा कहा जाता है।