उत्सवप्रियता भारतीय जीवन की प्रमुख विशेषता है। देश में समय-समय पर अनेक पर्वों एवं त्योहारों का भव्य आयोजन इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नाग पंचमी का त्योहार मनाया जाता है, यह नागों को समर्पित है।
इस त्योहार पर व्रतपूर्वक नागों का अर्चन-पूजन होता है। वेद और पुराणों में नागों का उद्गम महर्षि कश्यप और उनकी पत्नी कद्रू से माना गया है। नागों का मूलस्थान पाताल लोक में है। पुराणों में नागलोक की राजधानी के रूप में भोगवतीपुरी विख्यात है।
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नाग पंचमी कब है ?
नाग पंचमी 2022 / Nag Panchami 2022 Date – 02 Aug 2022
तिथि – श्रावण शुक्ल पंचमी
नाग पंचमी का महत्व
संस्कृत कथा-साहित्य में विशेष रूप से ‘कथासरित्सागर’ नागलोक और वहाँ के निवासियों की कथाओं से ओतप्रोत है। गरुड़ पुराण, भविष्य पुराण, चरक संहिता, सुश्रुत संहिता, भावप्रकाश आदि ग्रन्थों में नाग सम्बन्धी विविध विषयों का उल्लेख मिलता है।
पुराणों में यक्ष, किन्नर और गन्धर्वों के वर्णन के साथ नागों का भी वर्णन मिलता है। भगवान विष्णु की शय्या की शोभा शेषनाग बढ़ाते हैं। भगवान शिव और गणेश जी के अलंकरण में भी नागों की महत्वपूर्ण भूमिका है।
योगसिद्धि के लिये जो कुण्डलिनी शक्ति जाग्रत की जाती है, उसको सर्पिणी कहा जाता है। पुराणों में भगवान सूर्य के रथ में द्वादश नागों का उल्लेख मिलता है, जो क्रमशः प्रत्येक मास में उनके रथ के वाहक बनते हैं।
इस प्रकार अन्य देवताओं ने भी नागों को धारण किया है। नागदेवता भारतीय संस्कृति में देवरूप में स्वीकार किये गये हैं।
कश्मीर के जाने-माने संस्कृत कवि कल्हण ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘राजतरंगिणी’ में कश्मीर की सम्पूर्ण भूमि को नागों का अवदान माना है। वहाँ के प्रसिद्ध नगर अनन्तनाग का नामकरण इसका ऐतिहासिक प्रमाण है।
देश के पर्वतीय प्रदेशों में नागपूजा बहुतायत से होती है। यहाँ नागदेवता अत्यन्त पूज्य माने जाते हैं। हमारे देश के प्रत्येक ग्राम-नगर में ग्रामदेवता और लोकदेवता के रूप में नाग देवताओं के पूजा स्थल हैं।
भारतीय संस्कृति में सायं-प्रातः भगवान के स्मरण के साथ अनन्त तथा वासुकि आदि पवित्र नागों का नामस्मरण भी किया जाता है जिनसे नागविष और भय से रक्षा होती है तथा सर्वत्र विजय होता है।
अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलम् ।
शंखपालं धार्तराष्ट्रं तक्षकं कालियं तथा ॥
एतानि नव नामानि नागानां च महात्मनाम् ।
सायंकाले पठेन्नित्यं प्रातःकाले विशेषतः ॥
तस्मै विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत् ॥
नागों की अनेक जातियाँ और प्रजातियाँ हैं। भविष्य पुराण में नागों के लक्षण, नाम, स्वरुप एवं जातियों का विस्तार से वर्णन मिलता है। मणिधारी तथा इच्छाधारी नागों का भी उल्लेख मिलता है।
देवीभागवत में प्रमुख नागों का नित्य स्मरण किया गया है। हमारे ऋषि-मुनियों ने नागोपासना में अनेक व्रत-पूजन का विधान किया है।
श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी नागों को अत्यन्त आनंद देनेवाली है। पंचमी तिथि को नागपूजा में उनको गोदुग्ध से स्नान कराने का विधान है।
कहा जाता है कि एक बार मातृ शाप से नागलोक जलने लगा। इस दाह पीड़ा की निवृत्ति के लिये नाग पंचमी को गोदुग्ध स्नान जहाँ नागों को शीतलता प्रदान करता है, वहाँ भक्तों को सर्पभय से मुक्ति भी देता है।
व्रत विधि
हमारे धर्मग्रन्थों में श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को नाग पूजा का विधान है। व्रत के साथ एक बार भोजन करने का नियम है।
पूजा में पृथ्वी पर नागों का चित्रांकन किया जाता है। स्वर्ण, रजत, काष्ठ या मिट्टी से नाग बनाकर पुष्प, गंध, धूप-दीप एवं विविध नैवेद्यों से नागों का पूजन होता है।
नागपूजन में निम्नलिखित मन्त्रों का उच्चारण कर नागों को प्रणाम किया जाता है –
सर्वे नागाः प्रीयन्तां मे ये केचित् पृथिवीतले ॥
भविष्य पुराण, ब्राह्मपर्व ३२ | ३३-३४
ये च हेलिमरीचिस्था येऽन्तरे दिवि संस्थिताः ।
ये नदीषु महानागा ये सरस्वतिगामिनः ।
ये च वापीतडागेषु तेषु सर्वेषु वै नमः ॥
अर्थ – जो नाग पृथ्वी, आकाश, स्वर्ग, सूर्य की किरणों, सरोवरों, वापी, कूप तथा तालाब आदि में निवास करते हैं, वे सब हम पर प्रसन्न हों, हम उनको बार-बार नमस्कार करते हैं।
नाग पंचमी कथा
नाग पंचमी की कथा के श्रवण का बड़ा महत्व है। इस कथा के प्रवक्ता सुमन्त मुनि थे तथा श्रोता पाण्डव वंश के राजा शतानीक थे। कथा इस प्रकार है –
एक बार देवताओं तथा असुरों ने समुद्र मंथन द्वारा चौदह रत्नों में से एक उच्चैःश्रवा नामक अश्वरत्न प्राप्त किया था।
यह अश्व अत्यन्त श्वेतवर्ण का था। उसे देखकर नागमाता कद्रू तथा विमाता विनता में अश्व के रंग को लेकर वाद-विवाद हुआ।
कद्रू ने कहा कि अश्व के केश श्यामवर्ण के हैं। यदि मैं अपने कथन में असत्य सिद्ध होऊँ तो मैं तुम्हारी दासी बनूँगी अन्यथा तुम मेरी दासी बनोगी।
कद्रू ने नागों को बाल के समान सूक्ष्म बनकर अश्व के शरीर में लिपट जाने को कहा, किन्तु नागों ने अपनी असमर्थता प्रकट की।
इस पर कद्रू ने क्रुद्ध होकर नागों को शाप दिया कि पाण्डववंश के राजा जनमेजय नागयज्ञ करेंगे, उस यज्ञ में तुम सब जलकर भस्म हो जाओगे।
नागमाता के शाप से भयभीत नागों ने वासुकि के नेतृत्व में ब्रह्माजी से शाप निवृत्ति का उपाय पूछा तो ब्रह्माजी ने निर्देश दिया कि यायावरवंश में उत्पन्न तपस्वी जरत्कारु तुम्हारे बहनोई होंगे। उनका पुत्र आस्तीक तुम्हारी रक्षा करेगा।
ब्रह्माजी ने पंचमी तिथि को नागों को यह वरदान दिया तथा इसी तिथि पर आस्तीक मुनि ने नागों का रक्षण किया था। अतः नाग पंचमी का यह व्रत ऐतिहासिक तथा सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है।
उपसंहार
भारत एक धर्मप्राण देश है, भारतीय चिन्तन प्राणिमात्र में ही आत्मा और परमात्मा के दर्शन करता है एवं एकता का अनुभव करता है।
यह दृष्टि ही जीवमात्र (मनुष्य, पशु, पक्षी, कीट-पतंग आदि) में ईश्वर के दर्शन कराती है। जीवों के प्रति आत्मीयता और दयाभाव को विकसित करती है।
अतः नाग हमारे लिये पूज्य और संरक्षणीय हैं। प्राणिशास्त्र के अनुसार नागों की असंख्य प्रजातियाँ हैं, जिनमें विषैले नागों की संख्या बहुत कम है। ये नाग हमारे कृषि सम्पदा की कृषिनाशक जीवों से रक्षा करते हैं।
पर्यावरण रक्षा तथा वन सम्पदा में भी नागों की महत्वपूर्ण भूमिका है। नाग पंचमी का पर्व नागों के साथ जीवों के प्रति सम्मान, उनके संवर्धन एवं संरक्षण की प्रेरणा देता है। यह पर्व प्राचीन समय के अनुरूप आज भी प्रासंगिक है।
संबंधित प्रश्न
नाग पंचमी क्यों मनाई जाती है ?
कहा जाता है कि एक बार मातृ शाप से नागलोक जलने लगा। इस दाह पीड़ा की निवृत्ति के लिये नाग पंचमी को गोदुग्ध स्नान जहाँ नागों को शीतलता प्रदान करता है, वहाँ भक्तों को सर्पभय से मुक्ति भी देता है।
ब्रह्माजी ने पंचमी तिथि को ही नागों को यह वरदान दिया था कि यायावरवंश में उत्पन्न तपस्वी जरत्कारु नागों के बहनोई होंगे और उन्हीं का पुत्र आस्तीक नागमाता के शाप से नागों की रक्षा करेगा।
इसी तिथि पर आस्तीक मुनि ने नागों का रक्षण किया था। श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी नागों को अत्यन्त आनंद देनेवाली है इसीलिये इस दिन नाग पंचमी मनाते हैं।
नाग पंचमी कब मनाई जाती है ?
नाग पंचमी प्रत्येक वर्ष श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाई जाती है।
बहुत ही उत्तम जानकारी आपने प्रधान के बहुत-बहुत धन्यवाद सादर जय श्री राम
धन्यवाद