भाद्रपद शुक्ल पक्ष की पंचमी ‘ऋषि पंचमी’ कहलाती है। इस दिन किये जाने वाले व्रत को ऋषि पंचमी व्रत कहते हैं।
यह व्रत ज्ञात-अज्ञात पापों के शमन के लिये किया जाता है, अतः स्त्री-पुरुष दोनों इस व्रत को करते हैं।
स्त्रियों से रजस्वला अवस्था में जाने-अनजाने घर के पात्र आदि वस्तुओं का प्रायः स्पर्श हो जाता है, इससे होनेवाले पाप के शमन के लिये वे इस व्रत को करती हैं।
इस व्रत में सप्तर्षियों सहित अरुन्धती का पूजन होता है, इसीलिये इसे ऋषि पंचमी कहते हैं।
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ऋषि पंचमी कब है ?
ऋषि पंचमी व्रत 2022 / Rishi Panchami 2022 Date – 2 Sept 2022
तिथि – भाद्रपद शुक्ल पंचमी
व्रत विधि
इस दिन व्रती को चाहिये कि वह प्रातःकाल से मध्याह्न पर्यन्त उपवास करके मध्याह्न के समय किसी नदी या तालाब पर जाये।
वहाँ अपामार्ग की दातौन से दाँत साफकर शरीर में मिट्टी लगाकर स्नान करे। इसके बाद पंचगव्य का पान करना चाहिये। तदनन्तर घर आकर गोबर से पूजा का स्थान चौकोर लीपना चाहिये।
अनेक रंगों से रंगोली बनाकर उस पर मिट्टी अथवा ताँबे का घट (कलश) स्थापित करके उसे वस्त्र से लपेटकर उसके ऊपर ताँबे अथवा मिट्टी के बर्तन में जौ भरकर रखना चाहिये।
उस घट का फूल, गंध और अक्षत आदि से पूजन करना चाहिये। व्रत के प्रारम्भ में यह संकल्प करना चाहिये –
(आपका गोत्र) (आपका नाम) अहं मम आत्मनो रजस्वलावस्थायां गृहभाण्डादिस्पर्शदोषपरिहारार्थं अरुन्धतीसहितसप्तर्षिपूजनं करिष्ये।
कलश के पास ही अष्टदल कमल बनाकर उसके दलों में कश्यप, अत्रि, भरद्वाज, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि तथा वशिष्ठ – इन सप्तर्षियों और वशिष्ठ पत्नी देवी अरुन्धती की प्रतिष्ठा करनी चाहिये।
इसके बाद सप्तर्षियों तथा अरुन्धती का षोडशोपचारपूर्वक पूजन करना चाहिये।
|| अरुन्धतीसहितसप्तर्षिभ्यो नमः ||
इस दिन प्रायः लोग दही और साठी का चावल खाते हैं। नमक का प्रयोग वर्जित है। दिन में केवल एक ही बार भोजन करना चाहिये।
कलश आदि पूजन सामग्री को ब्राह्मण को दान कर देना चाहिये। पूजन के पश्चात ब्राह्मण भोजन कराकर ही स्वयं प्रसाद पाना चाहिये।
ऋषि पंचमी व्रत कथा
सत्ययुग में श्येनजित् नामक एक राजा राज्य करता था। उसके राज्य में सुमित्र नाम का एक ब्राह्मण रहता था जो वेदों का विद्वान था।
सुमित्र खेती द्वारा अपने परिवार का भरण-पोषण करता था। उसकी पत्नी जयश्री सती, साध्वी और पतिव्रता थी। वह खेती के कामों में भी अपने पति का सहयोग करती थी।
एक बार रजस्वला अवस्था में अनजाने में उसने घर का सब कार्य किया और पति का भी स्पर्श कर लिया। दैवयोग से पति-पत्नी का शरीरान्त एक साथ ही हुआ।
रजस्वला अवस्था में स्पर्शास्पर्श का विचार न रखने के कारण स्त्री ने कुतिया और पति ने बैल की योनि प्राप्त की, परंतु पूर्व जन्म में किये गये अनेक धार्मिक कृत्यों के कारण उन्हें ज्ञान बना रहा।
संयोग से इस जन्म में भी वे साथ-साथ अपने ही घर में अपने पुत्र और पुत्रवधू के साथ रह रहे थे।
ब्राह्मण के पुत्र का नाम सुमति था। वह भी पिता की भाँति वेदों का विद्वान था।
पितृपक्ष में उसने अपने माता-पिता का श्राद्ध करने के उद्देश्य से पत्नी से कहकर खीर बनवायी और ब्राह्मणों को निमंत्रण दिया।
उधर एक सर्प ने आकर खीर को विषाक्त कर दिया। कुतिया बनी ब्राह्मणी यह सब देख रही थी।
उसने सोचा कि यदि इस खीर को ब्राह्मण खायेंगे तो विष के प्रभाव से मर जायेंगे और सुमति को पाप लगेगा।
ऐसा विचारकर उसने सुमति की पत्नी के सामने ही जाकर खीर को छू दिया।
इसपर सुमति की पत्नी बहुत क्रोधित हुई और चूल्हे से जलती लकड़ी निकालकर उसकी पिटाई कर दी। उस दिन उसने कुतिया को भोजन भी नहीं दिया।
रात्रि में कुतिया ने बैल से सारी घटना बताई। बैल ने कहा कि आज तो मुझे भी कुछ खाने को नहीं दिया गया जबकि मुझसे दिनभर काम लिया गया।
सुमति हम दोनों के ही उद्देश्य से श्राद्ध कर रहा है और हमें ही भूखों मार रहा है। इस तरह हम दोनों के भूखे रह जाने से तो इसका श्राद्ध करना ही व्यर्थ हुआ।
सुमति द्वार पर लेटा कुतिया और बैल की बातचीत सुन रहा था। वह पशुओं की बोली भलीभाँति समझता था।
उसे यह जानकर अत्यन्त दुःख हुआ कि मेरे माता-पिता इन निकृष्ट योनियों में पड़े हैं।
वह दौड़ता हुआ एक ऋषि के आश्रम में गया और उनसे अपने माता-पिता के पशुयोनि में पड़ने का कारण और मुक्ति का उपाय पूछा। ऋषि ने ध्यान और योगबल से सारा वृत्तान्त जान लिया।
उन्होंने सुमति से कहा कि तुम पति-पत्नी भाद्रपद शुक्ल पक्ष की पञ्चमी को ऋषि पंचमी का व्रत करो और उस दिन बैल के जोतने से उत्पन्न कोई भी अन्न न खाओ।
इस व्रत के प्रभाव से तुम्हारे माता-पिता की मुक्ति हो जायेगी। यह सुनकर मातृ-पितृ भक्त सुमति ने ऋषि पंचमी का व्रत किया, जिसके प्रभाव से उसके माता-पिता को पशुयोनि से मुक्ति मिल गयी।
उपसंहार
यह व्रत शरीर के द्वारा अशौचावस्था में किये गये स्पर्शास्पर्श तथा अन्य पापों के प्रायश्चित के रूप में किया जाता है।
इस व्रत से स्त्रियों को रजस्वला अवस्था में स्पर्शास्पर्श का विचार रखने की शिक्षा लेनी चाहिए। साथ ही पुरुषों को भी इन दिनों संयमपूर्वक रहना चाहिये।
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संबंधित प्रश्न
यह व्रत ज्ञात-अज्ञात पापों के शमन के लिये किया जाता है, अतः स्त्री-पुरुष दोनों इस व्रत को करते हैं।
स्त्रियों से रजस्वला अवस्था में जाने-अनजाने घर के पात्र आदि वस्तुओं का प्रायः स्पर्श हो जाता है, इससे होनेवाले पाप के शमन के लिये वे इस व्रत को करती हैं।
इस दिन प्रायः लोग दही और साठी का चावल खाते हैं। नमक का प्रयोग वर्जित है। दिन में केवल एक ही बार भोजन करना चाहिये।
हिंदू कैलेंडर के अनुसार भाद्रपद (भादो) महिने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को ऋषि पंचमी मनाई जाती है।