सृष्टि के विस्तार के लिए ब्रह्मा जी ने मन के संकल्प से अपने ही समान तेजस्वी दस मानस पुत्रों को उत्पन्न किया। उनके नाम हैं – मरीचि , अत्रि , अङ्गिरा , पुलस्त्य , पुलह , क्रतु , भृगु , वशिष्ठ , दक्ष तथा नारद। ये ही ऋषि अलग अलग मन्वन्तरों में सप्तर्षि के रूप में अवतरित होते रहते हैं।
ये एक रूप से नक्षत्रलोक के सप्तर्षि मण्डल में स्थित रहते हैं और दूसरे रूप से तीनों लोकों में रहकर लोगों को धर्माचरण तथा सदाचार की शिक्षा देते हैं।
ये सभी ऋषि चिरंजीवी , त्रिकालदर्शी तथा दिव्य देहधारी होते हैं। इन ऋषियों का प्रादुर्भाव ब्रह्मा जी के मानसिक संकल्प से उनके अलग अलग अंगों से हुआ है।
नारद जी ब्रह्मा की गोद से , दक्ष अँगूठे से , वशिष्ठ प्राण से , भृगु त्वचा से , क्रतु हाथ से , पुलह नाभि से , पुलस्त्य कानों से , अङ्गिरा मुख से , अत्रि नेत्रों से और मरीचि मन से उत्पन्न हुए।
सृष्टि के विस्तार तथा उसके रक्षण में इन ऋषियों का महत्वपूर्ण योगदान है।
प्रत्येक मन्वन्तर में अलग अलग नामों से ये ही ऋषिगण सप्तर्षि होकर महाप्रलय के समय सभी चराचर जीव , वनस्पति और औषधियों के बीजों को सुरक्षित रखते हुए पुनः नयी सृष्टि में उसका विस्तार करते हैं।
इस प्रकार ये सप्तर्षि गण सृष्टि पर महान कृपा करते हैं।
ब्रह्मा जी के एक दिन में चौदह मनु होते हैं। मनुओं के राज्य का समय ही मन्वन्तर कहलाता है। मनुओं के नाम के अनुसार ही 14 मन्वन्तरों के 14 अलग अलग नाम पड़े।
अलग अलग मन्वन्तरों में सप्तर्षि बदल जाते हैं और भिन्न भिन्न नामों से अवतरित होते हैं। विष्णु पुराण के अनुसार 14 मन्वन्तरों के सप्तर्षियों के नाम इस प्रकार हैं।
स्वायम्भुव मन्वन्तर – मरीचि , अत्रि , अङ्गिरा , पुलस्त्य , पुलह , क्रतु और वशिष्ठ।
स्वारोचिष मन्वन्तर – ऊर्ज्ज , स्तम्भ , वात , प्राण , पृषभ , निरय और परीवान।
उत्तम मन्वन्तर – महर्षि वशिष्ठ के सातों पुत्र।
तामस मन्वन्तर – ज्योतिर्धामा , पृथु , काव्य , चैत्र , अग्नि , वनक और पीवर।
रैवत मन्वन्तर – हिरण्यरोमा , वेदश्री , ऊर्ध्वबाहु , वेदबाहु , सुधामा , पर्जन्य और महामुनि।
चाक्षुष मन्वन्तर – सुमेधा , विरजा , हविष्मान , उत्तम , मधु , अतिनामा और सहिष्णु।
वैवस्वत मन्वन्तर (वर्तमान) – काश्यप , अत्रि , वशिष्ठ , विश्वामित्र , गौतम , जमदग्नि और भरद्वाज।
सावर्णिक मन्वन्तर – गालव , दीप्तिमान , राम , अश्वत्थामा , कृप , ऋष्यशृङ्ग और व्यास।
दक्षसावर्णि मन्वन्तर – मेधातिथि , वसु , सत्य , ज्योतिष्मान , द्युतिमान , सवन और भव्य।
ब्रह्मसावर्णि मन्वन्तर – तपोमूर्ति , हविष्मान , सुकृत , सत्य , नाभाग , अप्रतिमौजा और सत्यकेतु।
धर्मसावर्णि मन्वन्तर – वपुष्मान , घृणि , आरुणि , निःस्वर , हविष्मान , अनघ और अग्नितेजा।
रूद्रसावर्णि मन्वन्तर – तपोद्युति , तपस्वी , सुतपा , तपोमूर्ति , तपोधन , तपोरति और तपोधृति।
देवसावर्णि मन्वन्तर – धृतिमान , अव्यय , तत्वदर्शी , निरुत्सुक , निर्मोह , सुतपा और निष्प्रकम्प।
इन्द्रसावर्णि मन्वन्तर – अग्निध्र , अग्निबाहु , शुचि , युक्त , मागध , शुक्र और जित।
वेदों में सप्तर्षियों की महिमा का अनेकों बार उल्लेख हुआ है। वेदों के अनेक मन्त्रों में भी सप्तर्षियों की प्रार्थना की गयी है।
महर्षि वशिष्ठ के साथ ही उनकी धर्मपत्नी देवी अरुन्धती भी सप्तर्षि मण्डल में स्थित रहती हैं। इसलिए सप्तर्षियों के साथ ही देवी अरुन्धती का भी पूजन होता है।
अखण्ड सौभाग्य तथा श्रेष्ठ दाम्पत्य जीवन के लिए इनकी आराधना की जाती है।
|| अरुन्धतीसहितसप्तर्षिभ्यो नमः ||